डॉ. अंबेडकर पर विवाद: कांग्रेस की ऐतिहासिक उपेक्षा और राजनीतिक दोहरे मापदंड उजागर
केंद्रीय गृहमंत्री अमित शाह के डॉ. भीमराव अंबेडकर पर दिए गए बयान को लेकर विपक्षी दलों द्वारा की गई आलोचना ने एक ऐसा अवसर दिया है, जिसमें कांग्रेस की ऐतिहासिक नीतियों और उनके द्वारा अंबेडकर जैसे महान विभूतियों की उपेक्षा को उजागर किया जा सकता है। जबकि शाह या बीजेपी का उद्देश्य अंबेडकर का अपमान करना नहीं था, विपक्ष ने इसे राजनीतिक लाभ के लिए मुद्दा बना लिया। कांग्रेस के रिकॉर्ड की पड़ताल से यह स्पष्ट होता है कि उनकी राजनीति अक्सर चयनात्मक सम्मान और आत्म-प्रचार तक सीमित रही है।
1. डॉ. अंबेडकर की उपेक्षा: कांग्रेस का ऐतिहासिक रिकॉर्ड
- डॉ. भीमराव अंबेडकर, जो भारतीय संविधान के प्रमुख वास्तुकार और सामाजिक न्याय के प्रतीक थे, को कांग्रेस के 50 साल से अधिक शासनकाल के दौरान भारत रत्न से सम्मानित नहीं किया गया।
- 1990 में जनता दल की सरकार (बीजेपी के समर्थन से) ने अंबेडकर को मरणोपरांत भारत रत्न प्रदान किया। यह देरी कांग्रेस के उनके प्रति ऐतिहासिक उपेक्षा को उजागर करती है।
- इसके विपरीत, बीजेपी ने अंबेडकर की विरासत को सक्रिय रूप से मान्यता दी है और उनके योगदान को सार्वजनिक जीवन और शासन में शामिल किया है।
2. भारत रत्न: कांग्रेस का आत्म-पुरस्कार देने का चलन
- कांग्रेस शासन के दौरान भारत रत्न को अक्सर राजनीतिक उपकरण के रूप में इस्तेमाल किया गया। जवाहरलाल नेहरू और इंदिरा गांधी ने अपने-अपने प्रधानमंत्रित्व काल में स्वयं को यह पुरस्कार प्रदान किया, जिसे व्यापक रूप से आत्म-प्रचार और वंशवादी मानसिकता के रूप में देखा गया।
- इसके विपरीत, बीजेपी सरकारों ने इस पुरस्कार को राजनीतिक और वैचारिक सीमाओं से परे जाकर प्रदान किया है।
3. चयनात्मक सम्मान बनाम समावेशिता
- कांग्रेस ने अक्सर अपने राजनीतिक घेरे से बाहर के व्यक्तित्वों की उपेक्षा की, जबकि बीजेपी ने प्रणब मुखर्जी और पी.वी. नरसिम्हा राव जैसे कांग्रेस नेताओं को भी भारत रत्न से सम्मानित किया है।
- मोदी सरकार ने क्षेत्रीय नेताओं और सामाजिक न्याय के प्रतीकों जैसे चौधरी चरण सिंह, मदन मोहन मालवीय और नानाजी देशमुख को सम्मानित कर ऐतिहासिक न्याय का उदाहरण पेश किया।
4. अंबेडकर की विरासत का राजनीतिक उपयोग
- आज कांग्रेस और उसके सहयोगी अंबेडकर का नाम उपेक्षित (हाशिये पर) समुदायों को आकर्षित करने के लिए बार-बार इस्तेमाल करते हैं, जबकि उनके शासनकाल में उन्होंने अंबेडकर को लंबे समय तक अनदेखा किया।
- इसके विपरीत, बीजेपी ने अंबेडकर की शिक्षाओं को अपनी नीतियों और योजनाओं में शामिल किया है, जैसे संविधान दिवस का आयोजन और अंबेडकर स्मारकों की स्थापना।
5. कांग्रेस और उसके सहयोगियों की असलियत उजागर करना
- शाह के बयान पर विपक्ष की आलोचना उस विडंबना को नजरअंदाज करती है, जहां कांग्रेस ने अंबेडकर को मान्यता देने में देरी की।
- बीजेपी अपनी समावेशी नीतियों और ऐतिहासिक न्याय को उजागर कर कांग्रेस की चयनात्मक राजनीति और आत्म-प्रचार की नीतियों को सामने रख सकती है।
अंबेडकर पर कांग्रेस की राजनीति का पर्दाफाश
अमित शाह के बयान पर उठे विवाद ने कांग्रेस के अंबेडकर के प्रति ऐतिहासिक रवैये और उनकी राजनीति को उजागर करने का अवसर दिया है। बीजेपी अपने समावेशी दृष्टिकोण और ऐतिहासिक न्याय के माध्यम से यह दिखा सकती है कि वह अंबेडकर जैसे महान नेताओं की सच्ची विरासत को आगे बढ़ा रही है। यह विवाद इस बात को रेखांकित करता है कि राष्ट्रीय आइकनों का सम्मान राजनीति से ऊपर होना चाहिए।
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